Friday, June 17, 2011

क्या बेचेंगे आप !

चाहे वो स्वतंत्रता के नारे हो या भ्रसटाचार के खिलाफ आवाज़ , हर जगह संतो, स्वामी से लेकर आम आदमी तक ने अनशन का ही सहारा लिया है. लेकिन इस अनशन से न तो किसी समस्या का निपटारा हुआ है न ही किसी का भला. गाँधी जी के अनशनो की बदौलत हमें आजादी तो मिल गयी पर ताउम्र बटवारे के दंश ने हमारा साथ नहीं छोड़ा. १५ अगस्त १९४७ से लेकर आज तक हम अपने पडोसी देशो के साथ तनावपूर्ण वातावरण में जीते आये हैं और जीते रहेंगे . यही हाल स्वामी निगमानंद सरस्वती का भी हुआ जिन्होंने गंगा की पवन धारा को बचने के लिए अपनी क़ुरबानी तक दे दी. 
चार महींनो तक अनशन करने के बाद स्वामी निगमानंद ने गंभीर अवस्था में जोल्ली ग्रांट हिमालयन इंस्टिट्यूट में दम तोड़ दिया. इससे पहले भी कई बार गंगा को अवैध खनन से बचने के लिए आवाज़े बुलंद करने वाले स्वामी निगमानंद ने अनशन का सहारा लिया था. पर बार बार आश्वाशन और कार्यवाही के नाम पर उनकी श्रधा और समर्पण को ठगा गया. 
कब कब प्रशाशन ने दिया झूठा आश्वाशन 
पिछले बारह साल से गंगा को अवैध खनन से बचने के लिए तत्पर स्वामी निगमानंद सरस्वती ने इससे पहले २० जनवरी २००८ से लेकर १ अप्रैल २००८ तक भूख हरताल की थी , जल्द ही गंगा के किनारे पत्थर का खनन बंद कर दिया गया था , पर ये चुप्पी अस्थायी थी उनकी आवाज़ को शांत करने के लिए. क्यूंकि कुछ दिनों बाद फिर  खनन शुरू हो गया. 
एक बार मात्री सदन के स्वामी दयानंद ने भी १६३ दिनों तक अनशन कर अवैध खनन को बंद कराने की मांग की थी. फिर से खनन बंद हुआ पर इस बार भी नतीजा सिफार रहा क्यूंकि कुछ दिनों बाद फिर खनन शुरू हो गया. 
मात्री सदन के ब्लॉग के अनुसार हिमालयन स्टोन क्रेशर गंगा नदी के तल को नुकशान पहुंचा रहा है और साथ ही कुम्भ मेले का आयोजन करने वाले हरिद्वार के घाटों को भी भरी क्षति पहुंचा रहा है . पिछले दस सालों से युध्सतर पर जरी बालू और पत्थर का खनन न तो रुकने का नाम ले रहा है और न ही प्रशासन इस पर कार्यवाई कर रही है.
अरे भाई! इस ज़माने में आप प्रशासन से क्या उम्मीद रखते हैं. जो सरकार ही ऐसे संरक्षण न दे तो क्या ये धंधे यूँ ही फल फूल जायेंगे. हर गैरकानूनी , असंवैधानिक और अवैध कारोबार को चलने में सरकार का पूरा समर्थन , पोर्त्साहन और संरक्षण रहता है. अवैध करोबारियों की हिम्मत इतनी बढ़ जाती है की अन्संकारियों के जान तक ले लेते हैं. 
यही तो नियति है सच्चे समर्पण की कि उन्हें मौत ही नसीब होती है. वर्ना अनशन पर बैठने वाले बैठने वाले अन्ना और रामदेव और उनकी सेना ने भी कुछ कमल कर दिखाया होता. इन्हें तो बस प्रसिधी कि भूख थी . ये तो उन बॉलीवुड वालो से भी गिल गुजरे हैं जो अपनी फिल्म कि पुब्लिसिटी के लिए क्या कुछ नहीं करते. भाई! वो तो बनिए हैं अपना सामान बेचते हैं . पर ये अनशनकारियों क्या बेचने कि जुगत में हैं. 
भाई हम तो यही कहेंगे कि ये पब्लिक है ये सब जानती है....अन्दर क्या है बहार क्या है ....सब पब्लिक पहचानती है.

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