Tuesday, April 23, 2013

आँखों में कई खवाब हैं अंकित
भविष्य के समर से हैं आशंकित
फिर भी गढ़े ये रंग नित्य नविन
भंवर बवंडर से लड़ बने प्रवीण
इन खाव्बों तलाश है हरयाली की
जवाबों तलख़ इस बेखयाली की
चाह है संग और उमंग की
न कहीं वेदना और जंग की
समर बीते हज़ार बर्बादी की
अब तो चाह है बस आज़ादी की
लगे पंख अब ऊँची उड़ान हो
भावनाओं से गढ़ा एक जहान हो

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